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आचार्य प्रशांत का संदेश: क्यों ज़रूरी है सचेत और प्रेमपूर्ण पालन-पोषण?

आज के समय में बच्चों का पालन-पोषण सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि एक कला और साधना है। आचार्य प्रशांत ने अपने विचारों में इस बात को गहराई से समझाया कि घर में होने वाला अत्याचार और गलत पालन-पोषण बच्चों के जीवन पर कितना गहरा असर डालता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि बच्चों की परवरिश में सबसे बड़ी समस्या बाहर की परिस्थितियाँ नहीं, बल्कि माता-पिता की आंतरिक अपरिपक्वता और अज्ञानता है।

हिंसा – पालन-पोषण की असफलता का संकेत

आचार्य प्रशांत ने कहा कि जब माता-पिता बच्चों को मारते-पीटते हैं या सख़्त दंड देते हैं, तो यह बच्चे की गलती से ज्यादा माता-पिता की असफलता दर्शाता है। शारीरिक दंड किसी समस्या का समाधान नहीं, बल्कि अज्ञानता और अधीरता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि बच्चे को डराकर नहीं, बल्कि समझाकर और उसके भीतर जागरूकता पैदा करके सही दिशा दी जा सकती है।

सही शिक्षा का अर्थ – चेतना का विकास

आचार्य प्रशांत के अनुसार, शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं है। असली शिक्षा है – बच्चे की चेतना को जागृत करना, उसकी जिज्ञासा को पोषित करना और उसके मन में आत्मविश्वास जगाना। जब माता-पिता प्यार और जागरूकता के साथ बच्चे को समझते हैं, तो उसका स्वभाव और व्यवहार दोनों सहज रूप से बदलते हैं।

हिंसा क्यों होती है?

उन्होंने बताया कि यह हिंसा इसलिए होती है क्योंकि माता-पिता खुद अपने अंदर परिपक्व नहीं हैं। वे समाज और परिवार के दबाव में जीते हैं, अपने गुस्से और अधीरता को बच्चों पर उतारते हैं। यह सिलसिला पीढ़ियों से चलता आ रहा है – जहाँ बच्चे डर से बड़े होते हैं, न कि प्रेम और समझ से।

हिंसा का प्रभाव

शारीरिक या मानसिक हिंसा का प्रभाव गहरा और दीर्घकालिक होता है। इससे बच्चों में डर, आक्रामकता या हीनभावना पैदा होती है। उनकी प्राकृतिक जिज्ञासा खत्म हो जाती है और उनका व्यक्तित्व दबा हुआ या विद्रोही बन जाता है।

समाधान क्या है?

आचार्य प्रशांत ने समाधान के रूप में सचेत और प्रेमपूर्ण पालन-पोषण पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि माता-पिता को पहले खुद जागरूक होना होगा। जब माता-पिता अपनी अधीरता, गुस्से और अज्ञान को दूर करेंगे, तभी वे बच्चों को सही दिशा दे पाएंगे। बच्चों को प्यार, संवाद और समझ के ज़रिए सिखाना ही असली पालन-पोषण है।

निष्कर्ष

आचार्य प्रशांत का संदेश स्पष्ट है – अगर हम एक बेहतर समाज चाहते हैं, तो शुरुआत घर से करनी होगी। बच्चों को मारना नहीं, समझना सीखें। डर नहीं, प्रेम दें। आदेश नहीं, जागरूकता दें। जब माता-पिता खुद को बदलेंगे, तभी आने वाली पीढ़ी जागरूक, संवेदनशील और आत्मविश्वासी बनेगी।
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