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सुप्रीम कोर्ट Verdict : आवारा कुत्तों की नसबंदी कर छोड़ा जाएगा, खूंखार और रेबीज संक्रमित कुत्ते रहेंगे कैद

देश में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनसे जुड़े विवाद लंबे समय से चर्चा का विषय रहे हैं। कुत्तों के हमले की घटनाएँ, रेबीज संक्रमण, लोगों की सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच टकराव ने अदालतों के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी। इसी बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि जिन कुत्तों को पकड़ा गया है, उनकी नसबंदी और टीकाकरण के बाद ही उन्हें छोड़ा जा सकता है। लेकिन जिन कुत्तों का व्यवहार आक्रामक है या जो रेबीज से संक्रमित पाए जाते हैं, उन्हें कैद में रखा जाएगा।

यह फैसला सीधे तौर पर उन लाखों लोगों को राहत देता है, जो कुत्तों के हमलों से परेशान थे। साथ ही, यह पशु कल्याण संगठनों के लिए भी अहम है, जो आवारा जानवरों की सुरक्षा और देखभाल के लिए लंबे समय से आवाज उठा रहे थे।


पृष्ठभूमि: सुप्रीम कोर्ट में मामला कैसे पहुंचा?

पिछले कुछ वर्षों में देशभर से डॉग बाइट और रेबीज संक्रमण की घटनाएँ लगातार सामने आती रही हैं। खासकर दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में इनकी संख्या बढ़ने लगी। कई बार तो छोटे बच्चों और बुजुर्गों की मौत तक के मामले दर्ज किए गए।

लोगों की सुरक्षा को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 11 अगस्त 2025 को आदेश दिया था कि सभी आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों के भीतर दिल्ली-एनसीआर के आवासीय क्षेत्रों से हटाकर शेल्टर होम भेजा जाए। इस आदेश पर पशु प्रेमी संगठनों और एनजीओ ने कड़ी आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि यह आदेश जानवरों के अधिकारों का उल्लंघन है और व्यावहारिक तौर पर इसे लागू करना भी मुश्किल है।

इसके बाद मामले को तीन जजों की विशेष पीठ – जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया – के पास भेजा गया। इस बेंच ने 14 अगस्त को सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था और 22 अगस्त को अपना निर्णय सुनाया।


फैसले की अहम बातें

  1. नसबंदी और टीकाकरण अनिवार्य – पकड़े गए कुत्तों को तभी छोड़ा जाएगा जब उनकी नसबंदी और रेबीज टीकाकरण हो चुका हो।
  2. खूंखार कुत्ते रहेंगे कैद में – जिन कुत्तों में आक्रामकता है या जो रेबीज से संक्रमित हैं, उन्हें शेल्टर होम या कैद में ही रखा जाएगा।
  3. सार्वजनिक जगहों पर खाना खिलाने पर रोक – अब किसी को भी सड़क या पार्क जैसी जगहों पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाने की अनुमति नहीं होगी। इसके लिए स्थानीय प्रशासन को अलग से जगह तय करनी होगी।
  4. नेशनल पॉलिसी की जरूरत – कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक ठोस नीति बनाई जाए, जिससे आवारा कुत्तों की समस्या का दीर्घकालिक समाधान निकल सके।
  5. अन्य हाईकोर्ट से लंबित मामले ट्रांसफर – देशभर के हाईकोर्ट में लंबित इस मुद्दे से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया है, ताकि एक समान नीति बनाई जा सके।
  6. जुर्माना और खर्च का प्रावधान – कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस मामले से जुड़े एनजीओ को ₹2 लाख और अन्य सभी याचिकाकर्ताओं को ₹25,000 की राशि जमा करनी होगी।

लोगों की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।


क्यों जरूरी है यह फैसला?

भारत में आवारा कुत्तों की संख्या लाखों में है। 2019-2024 के बीच देश में लगभग 20 लाख डॉग बाइट के मामले सामने आए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 20 हजार लोग रेबीज के कारण मरते हैं। इनमें से अधिकांश मामले कुत्तों के काटने के बाद समय पर टीका न लगने से होते हैं।

कई विशेषज्ञों का कहना है कि नसबंदी और टीकाकरण ही एकमात्र तरीका है, जिससे कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रित हो सके और संक्रमण पर भी रोक लगाई जा सके।


आगे क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर 2025 में तय की है। तब तक केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों से रिपोर्ट मांगी जाएगी कि उन्होंने इस दिशा में क्या कदम उठाए हैं।

संभावना है कि आने वाले समय में –


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में आवारा कुत्तों की समस्या पर एक संतुलित समाधान की दिशा में बड़ा कदम है। यह न केवल आम जनता की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है बल्कि जानवरों के अधिकारों की भी रक्षा करता है।

आगे यह देखना अहम होगा कि सरकारें और प्रशासन इस आदेश को कितनी प्रभावी तरीके से लागू करते हैं। अगर सही तरीके से इसे लागू किया गया तो आने वाले वर्षों में डॉग बाइट, रेबीज और कुत्तों की बेतहाशा बढ़ती संख्या की समस्या पर काबू पाया जा सकेगा।

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