क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी ज़िंदगी में इतनी उलझनें क्यों हैं? क्यों हम कभी रिश्तों से परेशान होते हैं, कभी करियर से, तो कभी अपनी ही सोच से? क्या वजह है कि खुशियों के बीच भी मन में खालीपन और तनाव बना रहता है?
B.K. शिवानी जी का कहना है कि इन सबकी जड़ एक ही आदत में छिपी है – “अहंकार (Ego) को पकड़ कर जीना और दूसरों की नकल करना।” यह आदत धीरे-धीरे हमारी खुशी, रिश्ते और शांति को खत्म कर देती है। आइए जानते हैं कैसे…
1. असली खुशी अंदर है, लेकिन हम बाहर ढूंढते हैं
हमारा जीवन आज एक रेस जैसा हो गया है। हम दूसरों से आगे निकलने के लिए, उनकी तारीफ़ पाने के लिए जी रहे हैं। जब कोई हमें सराहता है, तो खुशी आती है, और जब कोई अनदेखा करता है, तो दुख।
“असली सुख तब मिलेगा जब हमारी खुशी दूसरों के शब्दों पर नहीं, हमारी अपनी सोच पर टिकी हो।”
अगर हमारी शांति दूसरों के व्यवहार पर निर्भर है, तो हम कभी स्थिर नहीं रह सकते।
2. अहंकार जिसने रिश्ते तोड़े
अहंकार क्या है? “मैं सही हूँ… मेरी बात माननी ही पड़ेगी।” यह सोच ही अहंकार है। इसी से लड़ाई, बहस और रिश्तों में दूरी आती है।
अहंकार एक ऐसा दीवार है, जो प्यार और समझ को रोक देता है।
👉 अगर पति-पत्नी दोनों ही “क्यों मैं झुकूँ?” सोचेंगे, तो रिश्ता कहाँ टिकेगा?
👉 अगर दोस्त सिर्फ “मेरी बात सही है” पर अड़े रहेंगे, तो दोस्ती कब तक चलेगी?
अहंकार हमें अंदर से खाली कर देता है, और रिश्तों में जहर भर देता है।
3. पुरानी आदतें , जो जीवन को बिगाड़ देती हैं
हमारे अंदर बचपन से बनी आदतें हैं – गुस्सा करना, तुलना करना, दूसरों को जज करना।
जब तक हम इन्हें बदलते नहीं, तब तक जिंदगी में उलझनें बढ़ती रहेंगी।
शिवानी जी कहती हैं – “रुकिए, सोचिए… क्या मेरी प्रतिक्रिया प्यार से आ रही है या अहंकार से?”
अगर हम हर बार रुककर सोचें, तो कई समस्याएँ वहीं खत्म हो जाएँगी।
4. नकल करने की आदत , जिससे हमे सबसे बड़ा नुकसान होता है
आजकल लोग सोशल मीडिया पर देखकर जीते हैं।
👉 “उसने ये किया, मुझे भी करना है।”
👉 “उसने गाड़ी ली, मुझे भी लेनी है।”
इस नकल के चक्कर में हम अपनी असलियत खो देते हैं।
शिवानी जी कहती हैं – “आप खास हैं। दूसरों को कॉपी करके अपनी पहचान मत खोइए।”
दुनिया में कोई भी फिंगरप्रिंट एक जैसा नहीं है। तो फिर सोच एक जैसी क्यों हो?
5. जीवन को आसान कैसे बनाएं?
अब सवाल है – “क्या करें ताकि यह आदतें बदलें?”
✔ पहला कदम – खुद से जुड़ें
रोज़ 10 मिनट शांति से बैठकर अपने आप से बात करें। खुद से पूछें – “क्या मैं प्यार से काम कर रहा हूँ या अहंकार से?”
✔ दूसरा कदम – दूसरों को बदलने की कोशिश बंद करें
दूसरों को बदलने की कोशिश हमें थका देती है। शिवानी जी कहती हैं – “लोगों को बदलना आपका काम नहीं, अपना स्वभाव बदलना ही सबसे बड़ी जीत है।”
✔ तीसरा कदम – खुद को याद दिलाएं कि खुशी अंदर है
खुशी खरीदने से नहीं मिलती, तारीफ़ से नहीं मिलती, बल्कि तब मिलती है जब हम खुद को प्यार देते हैं।
✔ चौथा कदम – कॉपी करना छोड़ें
अपनी मौलिकता को अपनाइए। अगर हर कोई एक जैसा बनेगा, तो इस दुनिया की खूबसूरती कहाँ बचेगी?
असली ताकत – प्यार और करुणा
जब हम हर रिश्ते को प्यार और करुणा से संभालते हैं, तो अहंकार खुद ही मिट जाता है।
सोचिए – अगर किसी ने आपको बुरा कहा और आपने गुस्से में जवाब नहीं दिया, बल्कि मुस्कुराकर प्यार से पेश आए, तो किसे सुकून मिलेगा? आपको ही।
यह कोई कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है।
निष्कर्ष
शिवानी जी का संदेश साफ है – “जीवन की मुश्किलें बाहर से नहीं आतीं, वे हमारी सोच से पैदा होती हैं।”
अहंकार, नकल और दूसरों से उम्मीद करना छोड़ दें।
अपने असली गुणों – प्यार, शांति और करुणा – को अपनाएँ।
जीवन तब आसान होगा जब आप कह पाएँगे –
“मैं वही हूँ जो मुझे होना चाहिए… मुझे किसी से तुलना करने की जरूरत नहीं।”
👉 याद रखें – असली ताकत तब आती है जब हम अपने मन के मालिक बनते हैं।
तो आज से तय करें – अहंकार को छोड़ेंगे, प्यार को अपनाएँगे।
तभी जीवन सच में सरल, सुंदर और सुखद बनेगा।
अगर आप मानते हैं कि यह संदेश ज़रूरी है, तो इसे दूसरों तक ज़रूर पहुँचाएँ।
क्योंकि शायद किसी को यह पढ़कर उनकी ज़िंदगी बदल जाए।