क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी ज़िंदगी में इतनी उलझनें क्यों हैं? क्यों हम कभी रिश्तों से परेशान होते हैं, कभी करियर से, तो कभी अपनी ही सोच से? क्या वजह है कि खुशियों के बीच भी मन में खालीपन और तनाव बना रहता है?
B.K. शिवानी जी का कहना है कि इन सबकी जड़ एक ही आदत में छिपी है – “अहंकार (Ego) को पकड़ कर जीना और दूसरों की नकल करना।” यह आदत धीरे-धीरे हमारी खुशी, रिश्ते और शांति को खत्म कर देती है। आइए जानते हैं कैसे…
1. असली खुशी अंदर है, लेकिन हम बाहर ढूंढते हैं
हमारा जीवन आज एक रेस जैसा हो गया है। हम दूसरों से आगे निकलने के लिए, उनकी तारीफ़ पाने के लिए जी रहे हैं। जब कोई हमें सराहता है, तो खुशी आती है, और जब कोई अनदेखा करता है, तो दुख।
“असली सुख तब मिलेगा जब हमारी खुशी दूसरों के शब्दों पर नहीं, हमारी अपनी सोच पर टिकी हो।”