“आजकल पत्रकारिता कम, धमकी और दबाव का खेल ज़्यादा हो गया है।”
सोशल मीडिया पर उभरते कुछ स्वघोषित पत्रकार अब सच्चाई की रिपोर्टिंग नहीं करते, बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों को डराकर, दबाव बनाकर, या बदनाम कर अपना धंधा चला रहे हैं।
🎭 माइक का गलत इस्तेमाल
आज हर कोई माइक उठाकर पत्रकार बन गया है।
न कोई प्रमाण, न कोई ट्रेनिंग — बस एक यूट्यूब चैनल, और चल पड़ा ‘सच्चाई दिखाने’।
लेकिन हकीकत ये है कि:
- वे अफसरों के निजी वीडियो या ऑफिस की छोटी-मोटी खामियों को वायरल करने की धमकी देते हैं
- बदले में मांगते हैं पैसे, ठेके, या ‘सहयोग’
- जो अफसर ईमानदारी से काम करता है, उसे बदनाम करने की साजिश रचते हैं
🧨 सोशल मीडिया बना ब्लैकमेलिंग का अड्डा
🔻 ज़मीनी रिपोर्टिंग के नाम पर वीडियो शूट, फिर एडिट कर के वायरल करने की धमकी
🔻 “अगर पैसा नहीं दोगे तो तुम्हारे खिलाफ अभियान चलाएँगे”
🔻 कुछ लोग तो दूसरे राजनीतिक या माफिया गुटों के एजेंट बनकर अफसरों को टारगेट करते हैं
⚠️ इसका असर
- ईमानदार अधिकारियों का मनोबल टूटता है
- जनसेवा की प्रक्रिया पर नकारात्मक असर
- असली मीडिया की छवि को भी नुकसान
- समाज में भ्रम और अविश्वास का माहौल

🛡️ अब ज़रूरत है सख्त कार्रवाई की
🟠 सरकार को चाहिए कि:
- ऐसे फर्जी डिजिटल चैनलों को बंद करने का कानून बनाए
- पत्रकारिता के लिए आधिकारिक लाइसेंस और सत्यापन प्रक्रिया लागू हो
- सोशल मीडिया पर चलने वाले चैनलों की निगरानी के लिए समिति बने
- ब्लैकमेलिंग और धमकी देने वालों पर आईटी एक्ट और आपराधिक धाराओं में मामला दर्ज हो
📢 निष्कर्ष:
सोशल मीडिया आज एक बड़ा हथियार है — लेकिन जब वो हक़ के लिए नहीं, धंधे के लिए इस्तेमाल हो, तो उसकी ताकत एक ज़हर बन जाती है।
🔴 अब आवाज़ उठाइए इस काली दुनिया के खिलाफ।
🔴 ब्लैकमेल करने वालों की पहचान कीजिए, रिपोर्ट कीजिए।
🔴 सोशल मीडिया की सच्चाई को जानिए, और सच्चे पत्रकारों का समर्थन कीजिए।