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✨ परंपरा से आधुनिकता की ओर

बिहार का पश्चिम चंपारण जिला आज एक ऐसी परंपरा को फिर से जीवित कर रहा है, जो कभी घर-घर की शान हुआ करती थी—सिकी कला। सुनहरी घास से बनने वाली यह कला न सिर्फ सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि अब महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता और पहचान का माध्यम भी बन रही है।


🌿 सिकी घास की खासियत

सिकी घास नदियों के किनारे उगती है और इसे सूखाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसकी चमक और हल्केपन के कारण यह विशेष मानी जाती है।

  • इसमें कोई केमिकल या मशीनरी का इस्तेमाल नहीं होता।
  • पूरी तरह ईको-फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल
  • चमकदार और रंगों से रंगकर बेहद आकर्षक दिखती है।

👩‍🦱 महिलाएं बन रही हैं बदलाव की धुरी

बगहा और आसपास के इलाकों में 200 से ज्यादा आदिवासी महिलाएं इस कला को सीखकर अपने जीवन में नया अध्याय लिख रही हैं।

  • पहले ये महिलाएं खेतों में मजदूरी करती थीं।
  • आज वे कलाकार और उद्यमी बनकर सम्मान पा रही हैं।
  • हर टोकरी, पंखा, या सजावटी सामान उनकी कला और संघर्ष की कहानी कहता है।

📜 इतिहास और सांस्कृतिक जुड़ाव

सिकी कला की जड़ें मिथिला संस्कृति में 400 साल से भी पुरानी हैं।
कहा जाता है कि राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह में सिकी की टोकरी उपहार स्वरूप दी थी। तब से यह परंपरा शादी-ब्याह, तीज-त्योहार और विशेष अवसरों से जुड़ी रही है।


🛠️ कला की तकनीक

सिकी घास को बारीक काटकर, एक साधारण टकुआ (लोहे की सुई जैसी औज़ार) की मदद से मुञ्ज घास पर लपेटा जाता है।

  • किसी गोंद या धागे की ज़रूरत नहीं होती।
  • पूरी कला हाथों के हुनर पर आधारित है।
  • हर डिज़ाइन एक कहानी कहती है।

🌍 परंपरा से बाज़ार तक

आज यह कला केवल घरेलू उपयोग तक सीमित नहीं रही।

  • इंटीरियर डेकोर (कोस्टर, वॉल हैंगिंग, शोपीस)
  • फैशन एक्सेसरीज़ (बैग, झुमके, बॉक्स)
  • ग्लोबल मार्केट तक इसकी मांग

जीआई टैग (Geographical Indication) मिलने के बाद इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिल रही है।


💡 सिकी कला क्यों खास है?

पहलूमहत्व
सांस्कृतिक संरक्षणबिहार की लोकपरंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाना
महिला सशक्तिकरणघर की महिलाएं कलाकार और उद्यमी बन रहीं
पर्यावरण मित्रताप्लास्टिक के विकल्प के रूप में इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट
आर्थिक विकासग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिल रही

🏆 निष्कर्ष

सिकी कला का पुनर्जागरण बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित कर रहा है। यह सिर्फ कला नहीं, बल्कि महिलाओं की नई पहचान, आत्मनिर्भरता और सम्मान की कहानी है। सुनहरी घास से बुने ये हस्तशिल्प अब पूरी दुनिया में चमक बिखेर रहे हैं।