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विष्णुपद मंदिर ( Vishnupad Temple )

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गया का विष्णुपद मंदिर: आस्था, इतिहास और लोककथाओं का संगम

बिहार की धरती प्राचीन इतिहास, संस्कृति और धार्मिक धरोहरों से भरी हुई है। इन्हीं धरोहरों में से एक है विष्णुपद मंदिर, जो गया जिले में फल्गु नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि यहाँ भगवान विष्णु के चरणचिह्न स्थापित हैं और यही कारण है कि यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।


मंदिर का इतिहास और महत्व

विष्णुपद मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना बताया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गया का नाम गयासुर नामक एक दैत्य से जुड़ा है। गयासुर इतना धर्मात्मा और तपस्वी था कि देवता भी उससे भयभीत हो गए। उसकी तपस्या से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया, लेकिन उसकी शक्ति से देवताओं में असंतुलन उत्पन्न होने लगा। अंततः भगवान विष्णु ने गयासुर को अपने चरणों से दबा दिया।

कहा जाता है कि विष्णु जी का वह चरणचिह्न आज भी विष्णुपद मंदिर में मौजूद है। इसी कारण इस स्थल को मोक्षभूमि कहा जाता है और यहाँ पिंडदान व श्राद्ध का विशेष महत्व है।


वास्तुकला और निर्माण

वर्तमान विष्णुपद मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। यह वही महान रानी हैं जिन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर और सोमनाथ मंदिर का भी पुनर्निर्माण कराया था।

  • मंदिर का निर्माण ग्रेनेट पत्थरों से किया गया है।
  • इसकी ऊँचाई लगभग 100 फीट है और इसमें 30 से अधिक स्तंभ हैं।
  • गर्भगृह में 40 सेंटीमीटर लंबा और 15 सेंटीमीटर चौड़ा भगवान विष्णु का चरणचिह्न (फुटप्रिंट) बना हुआ है।
  • मंदिर के ऊपर एक अष्टकोणीय शिखर है जो देखने में बेहद भव्य प्रतीत होता है।
  • मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर भी बने हुए हैं, जिनमें भगवान शिव, गणेश, हनुमान और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।

पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ

  1. गयासुर की कथा:
    पौराणिक मान्यता के अनुसार, गयासुर नामक दैत्य इतना धर्मात्मा था कि लोग सिर्फ़ उसका नाम लेकर ही पापमुक्त हो जाते थे। यह देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब विष्णु जी ने गयासुर को अपने पैरों से दबा दिया। गयासुर ने उनसे प्रार्थना की कि उसकी देह को धर्मस्थल बना दिया जाए ताकि लोग पिंडदान और श्राद्ध कर अपने पितरों को मोक्ष दिला सकें। विष्णु जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और तभी से यह स्थल पितृपक्ष मेला और श्राद्ध कर्मों का सबसे बड़ा केंद्र बन गया।
  2. फल्गु नदी और सीता माता की कथा:
    कहा जाता है कि यहाँ की फल्गु नदी में श्राद्ध के समय पिंडदान का विशेष महत्व है। एक कथा के अनुसार, जब भगवान राम पितृ श्राद्ध करने के लिए यहाँ आए थे तो उनके साथ माता सीता भी थीं। उन्होंने फल्गु नदी, वटवृक्ष और गाय को साक्षी बनाकर पिंडदान किया। आज भी गया में श्राद्ध कर्म के समय सीता कुंड और वटवृक्ष की पूजा की जाती है।

श्राद्ध और पितृपक्ष मेला

विष्णुपद मंदिर का सबसे बड़ा महत्व पिंडदान और श्राद्ध कर्म से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ किया गया श्राद्ध पितरों को मोक्ष प्रदान करता है। हर साल पितृपक्ष (सितंबर–अक्टूबर) के समय हजारों-लाखों लोग गया पहुँचते हैं और अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते हैं।

  • यह आयोजन लगभग 15 दिन तक चलता है
  • पंडे (पंडित) पीढ़ियों से यहाँ पिंडदान कराते आ रहे हैं और उनके पास श्रद्धालुओं का वंशावली रिकॉर्ड भी सुरक्षित रहता है।
  • इस मेले में सिर्फ़ बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और विदेशों से लोग आते हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  • विष्णुपद मंदिर हिंदू धर्म के 108 दिव्य स्थलों में से एक माना जाता है।
  • यहाँ पिंडदान और श्राद्ध करने से आत्माओं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • यह मंदिर सिर्फ़ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि बिहार की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।
  • मंदिर के आस-पास का वातावरण भक्ति और श्रद्धा से भरा हुआ रहता है।

पर्यटन और आज का स्वरूप

आज विष्णुपद मंदिर न सिर्फ़ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि पर्यटन के लिहाज़ से भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। बिहार सरकार और पर्यटन विभाग यहाँ की सुविधाओं के विस्तार पर लगातार कार्य कर रहे हैं।

  • मंदिर परिसर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए धर्मशालाएँ और विश्राम गृह बने हुए हैं।
  • पितृपक्ष मेले के दौरान यहाँ विशेष सुरक्षा और व्यवस्था की जाती है।
  • गया आने वाले श्रद्धालु बोधगया के महाबोधि मंदिर, प्रेतशिला पर्वत और अन्य धार्मिक स्थलों की भी यात्रा करते हैं।

निष्कर्ष

गया का विष्णुपद मंदिर सिर्फ़ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम है। यह मंदिर हमें यह संदेश देता है कि हमारे पूर्वजों का सम्मान करना और उनकी स्मृति को जीवित रखना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आकर न सिर्फ़ अपने पितरों का पिंडदान करते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव भी करते हैं।

👉 इसलिए कहा जाता है –
“जो गया में पिंडदान करता है , उसके पितृ सदा के लिए मोक्ष प्राप्त करते हैं।”