Lakhisarai से एक बड़ी खबर सामने आई है। आधार कार्ड और सरकारी दस्तावेजों के नाम पर चल रहे काले कारोबार का साइबर थाना पुलिस ने पर्दाफाश किया है। यह धंधा फोटो स्टेट दुकानों और जनसेवा केंद्रों की आड़ में संचालित हो रहा था। पुलिस की कार्रवाई में दो दुकानदारों को गिरफ्तार किया गया है, जिनके पास से बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेज बरामद हुए हैं।
कैसे चला फर्जीवाड़ा का खेल?
जांच में सामने आया कि फोटो स्टेट दुकानदार अधिकृत आधार केंद्रों के ऑपरेटर से आधार का आइडी-पासवर्ड हासिल करते थे और उसकी मदद से नकली दस्तावेज बनाकर लोगों से पैसे वसूलते थे। यह नेटवर्क न केवल जिले तक सीमित था, बल्कि इसके तार बाहर तक फैले होने की आशंका जताई जा रही है।
पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि वे ऑनलाइन वेबसाइट्स के जरिए नकली दस्तावेज तैयार करते थे। किसी भी व्यक्ति की जानकारी भरकर उसका नाम, पता और जन्मतिथि एडिट कर नया जन्म प्रमाण पत्र या निवास प्रमाण पत्र बना दिया जाता था। इन दस्तावेजों का इस्तेमाल आगे चलकर आधार कार्ड और अन्य सरकारी प्रमाणपत्रों में बदलाव के लिए किया जाता था।
गिरफ्तार हुए दुकानदार और मास्टरमाइंड की तलाश
साइबर थाना पुलिस ने लखीसराय थाना चौक स्थित किंग फोटो स्टेट और सूर्यगढ़ा स्थित अश्विनी फोटो स्टेट से दो दुकानदारों—सौरभ और रोहित—को गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार सौरभ इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड था, जो किसी आधार केंद्र ऑपरेटर के सीधे संपर्क में था। उसके माध्यम से ही लॉगिन की डिटेल्स और पासवर्ड हासिल कर अवैध काम किया जा रहा था।
पुलिस अब इस बात की गहन छानबीन कर रही है कि आखिर किस आधार केंद्र के ऑपरेटर की आइडी-पासवर्ड का इस्तेमाल हो रहा था।

क्या मिला पुलिस के हाथ?
छापेमारी के दौरान साइबर थाना को कई अहम दस्तावेज मिले हैं—
- बड़ी संख्या में नकली जन्म प्रमाण पत्र
- निवास प्रमाण पत्र
- आधार कार्ड सुधार के लिए तैयार फार्म
- आधार केंद्र से संबंधित लॉगिन डिटेल्स
ये दस्तावेज साफ इशारा करते हैं कि आरोपी लंबे समय से बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा कर रहे थे।
जिले में 12 अधिकृत केंद्र, फिर भी धंधा फल-फूल रहा था
लखीसराय जिले में कंपटेक एजेंसी, पटना की देखरेख में 12 अधिकृत आधार केंद्र संचालित होते हैं। इनमें से सात केंद्र सभी प्रखंड मुख्यालयों में और बाकी अनुमंडल कार्यालय, जिला निबंधन एवं परामर्श केंद्र महिसोना, सदर अस्पताल और जिला परिषद कार्यालय में चलते हैं।
हालांकि इनमें से तीन केंद्र फिलहाल तकनीकी कारणों से बंद हैं। एजेंसी के जिला समन्वयक शंकर कुमार का दावा है कि अधिकृत केंद्रों पर किसी भी प्रकार की गड़बड़ी संभव नहीं है। मगर लखीसराय में हुए इस खुलासे ने उनके दावों की पोल खोल दी है। अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब सबकुछ सुरक्षित बताया जा रहा था तो आखिर यह फर्जीवाड़ा कैसे चल रहा था और किसकी मदद से?
साइबर थाना की जांच और संभावित बड़ा नेटवर्क
पुलिस को आशंका है कि यह महज दो दुकानदारों का खेल नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक संगठित नेटवर्क काम कर रहा है। एसपी अजय कुमार ने साफ कहा है कि पूरे मामले की गहन छानबीन की जा रही है और जल्द ही बड़े नामों का खुलासा हो सकता है।
संभावना जताई जा रही है कि इन फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल न केवल आधार कार्ड बनाने बल्कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण में भी किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह लोकतंत्र की पारदर्शिता के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
पुलिस का तर्क और आगे की कार्रवाई
पुलिस का मानना है कि फर्जी जन्म प्रमाण पत्र और निवास प्रमाण पत्र के जरिए आधार कार्ड में बदलाव कराना इस नेटवर्क का मुख्य धंधा था। इस तरह के आधार कार्ड आगे कई तरह की सरकारी योजनाओं और लाभ उठाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
फिलहाल साइबर थाना पुलिस ने सभी जब्त दस्तावेजों को जांच के लिए भेज दिया है और यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि जिले से बाहर किस नेटवर्क से इसका संबंध जुड़ा हुआ है।
आधार और सुरक्षा पर बड़ा सवाल
आधार कार्ड देश की सबसे बड़ी पहचान प्रणाली है, जिसे सरकारी योजनाओं से लेकर बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं तक हर जगह इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में इसका फर्जीवाड़ा किसी भी नागरिक और सिस्टम के लिए गंभीर खतरा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आधार का आइडी-पासवर्ड गलत हाथों में चला जाए तो इसका दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो सकता है। लखीसराय का यह मामला इसी खतरे की ओर इशारा करता है कि सिस्टम में अभी भी कई खामियां मौजूद हैं।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
लखीसराय में इस खुलासे के बाद स्थानीय लोग भी सकते में हैं। उनका कहना है कि अगर इस तरह आसानी से नकली दस्तावेज बनाए जा सकते हैं तो आम जनता की पहचान और सुरक्षा पर गंभीर खतरा है। कई लोगों ने मांग की है कि आधार केंद्रों की सुरक्षा और निगरानी व्यवस्था को और कड़ा किया जाए।
निष्कर्ष
लखीसराय में आधार कार्ड और सरकारी दस्तावेजों के फर्जीवाड़े ने न केवल जिले, बल्कि पूरे राज्य में साइबर सुरक्षा और पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। पुलिस की त्वरित कार्रवाई ने भले ही इस अवैध कारोबार की एक परत को उजागर कर दिया हो, लेकिन जांच में अभी कई नए खुलासे होना बाकी हैं।
यह मामला साफ दर्शाता है कि तकनीकी खामियों और मानवीय लापरवाही के कारण देश की सबसे अहम पहचान प्रणाली को भी गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। अब देखना यह है कि पुलिस की आगे की कार्रवाई इस पूरे नेटवर्क की जड़ तक पहुंच पाती है या नहीं।