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आज के समय में हर कोई सफलता की दौड़ में भाग रहा है। अच्छे घर, सुविधाएँ, और ऊँचे पद को सफलता का पैमाना माना जाता है। लेकिन क्या यह सब पाने के बाद भी मन को शांति और संतोष मिल पाता है? बहन शिवानी का संदेश यही है कि सफलता और खुशी दो अलग बातें हैं, और असली सफलता वही है जो भीतर से संतोष और आनंद दे।

 देने की शक्ति

जीवन में केवल पाने की चाह ही हमें थका देती है। बहन शिवानी कहती हैं कि जब हम कुछ देते हैं—चाहे वह मुस्कान हो, दयालुता हो या किसी की मदद—तो उससे हमारी आत्मा की “बैटरी” चार्ज होती है। सेवा और निस्वार्थ भाव से किया गया काम सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है, जो सबसे पहले हमें ही सुकून देती है। इसीलिए खुशी पाने का सबसे सीधा रास्ता है दूसरों को खुश करना।

अंदरूनी शांति बनाम बाहरी उपलब्धियाँ

आज हम तकनीकी और भौतिक साधनों में बहुत आगे बढ़ गए हैं। लेकिन इसके साथ ही तनाव, चिंता और अवसाद भी बढ़ा है। इसका कारण है कि हमने बाहरी सफलता को ही सबकुछ मान लिया, जबकि भीतर की शांति को नज़रअंदाज़ कर दिया। असली संतोष ध्यान, अच्छे संस्कार और सकारात्मक सोच से आता है। अगर मन शांत नहीं तो सुविधाएँ भी अधूरी लगती हैं।

शब्दों और संस्कारों का महत्व

हमारे शब्द और नाम भी ऊर्जा का रूप होते हैं। उच्च विचारों और अर्थपूर्ण नामों से मनोबल बढ़ता है। जैसे भारतीय परंपरा में नाम केवल पहचान के लिए नहीं, बल्कि अच्छे संस्कार और ऊर्जा देने के लिए रखे जाते थे। जब हम उच्च कंपन वाले शब्दों का प्रयोग करते हैं तो वह हमारे अवचेतन मन को सकारात्मक दिशा में ले जाते हैं।

सफलता का नया अर्थ

समाज ने सफलता को केवल भौतिक वस्तुओं और पद-प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है। लेकिन बहन शिवानी बताती हैं कि असली सफलता वही है जिसमें हम अपने आसपास के लोगों को खुशी और सहारा दे सकें। जब किसी के जीवन में हमारी वजह से सकारात्मक बदलाव आता है, तो वही असली उपलब्धि होती है।

धैर्य और सहनशीलता की ज़रूरत

पुरानी पीढ़ियों में धैर्य, सहनशीलता और संयम अधिक था। आज की पीढ़ी सुविधा तो पा रही है, लेकिन मानसिक मजबूती खो रही है। अगर हम आने वाली पीढ़ियों को यही तनाव और अधीरता सौंपेंगे तो उनका जीवन और कठिन हो जाएगा। इसलिए ज़रूरी है कि हम खुद धैर्य और भावनात्मक संतुलन विकसित करें और उन्हें भी यही संस्कार दें।

संतुलित जीवन

भौतिक आराम बुरा नहीं है, लेकिन केवल इन्हीं के पीछे भागना सही नहीं। अगर जीवन में धन है लेकिन मन बेचैन है, तो सब अधूरा लगता है। इसलिए हमें संतुलन बनाना होगा—जहाँ आराम और साधनों के साथ-साथ ध्यान, आत्मचिंतन और अच्छे संस्कार भी हों।

आत्मचिंतन और बदलाव

पिछले कुछ दशकों में हमने भौतिक प्रगति की है, लेकिन इसके साथ तनाव और बीमारियाँ भी बढ़ी हैं। अगर हम समय रहते नहीं रुके तो “तनाव” और “अवसाद” शब्द आम जीवन का हिस्सा बन जाएँगे। इसलिए हमें आत्मचिंतन करना होगा—क्या सच में हम सही दिशा में जा रहे हैं? अगर नहीं, तो बदलाव करना हमारी ज़िम्मेदारी है।

निष्कर्ष

बहन शिवानी का संदेश हमें याद दिलाता है कि सफलता केवल बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से भी मापी जानी चाहिए। दूसरों को खुशी देना, अपने संस्कारों को मज़बूत करना और आत्मा को सकारात्मक ऊर्जा से भरना ही असली सफलता है। अगर हम आने वाली पीढ़ियों को यही विरासत देंगे, तो समाज में संतुलन, खुशी और शांति अपने आप बढ़ेगी। असली जीत वही है जहाँ मन शांत हो और दिल संतुष्ट।

By Anjani Gupta

अंजनी गुप्ता वर्तमान में InfoBihar में बतौर डिजिटल कंटेंट क्रिएटर कार्यरत हैं। इन्हें कंटेंट राइटिंग, स्टोरीटेलिंग और क्रिएटिव स्क्रिप्ट राइटिंग में गहरी समझ है। खासतौर पर मोरल स्टोरीज, बच्चों के लिए रोचक कंटेंट, एजुकेशन, सोशल वेलफेयर और हिस्टोरिकल टॉपिक्स पर लिखने में अंजनी को महारत हासिल है। इनके पास कंटेंट डेवलपमेंट और डिजिटल मीडिया में कई वर्षों का अनुभव है। चाहे मोटिवेशनल स्टोरीज हों, हॉरर स्क्रिप्ट्स या फिर बच्चों के लिए इंटरैक्टिव स्टोरीज, अंजनी हर कंटेंट को सरल, आकर्षक और इन्फॉर्मेटिव भाषा में प्रस्तुत करना जानती हैं। राइटिंग के अलावा अंजनी को बुक डिज़ाइनिंग, क्रिएटिव आइडियाज डेवलप करना और यूट्यूब के लिए नैरेटिव-बेस्ड स्क्रिप्ट तैयार करना पसंद है। खाली समय में ये नई कहानियाँ लिखना, रिसर्च करना और म्यूज़िक सुनना पसंद करती हैं।