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माँ मुण्डेश्वरी मंदिर : आस्था, इतिहास और अनोखी परंपरा का अद्भुत संगम

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भारत की पहचान उसकी प्राचीन संस्कृति, धर्म और आस्था से होती है। यहाँ हर मंदिर, हर देवी-देवता की एक अनोखी कथा और महत्व है। इन्हीं में से एक है माँ मुण्डेश्वरी मंदिर, जो बिहार के कैमूर जिले की पंवरा पहाड़ी पर लगभग 600 फीट ऊँचाई पर स्थित है। माना जाता है कि यह भारत का सबसे प्राचीन जीवित मंदिर है जहाँ आज भी पूजा-अर्चना वैदिक परंपरा से होती है।
यह मंदिर सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों की आस्था का केन्द्र है। यहाँ देवी माँ वाराही स्वरूप में विराजमान हैं और उनके साथ पंचमुखी शिवलिंग भी स्थापित है।

माँ मुण्डेश्वरी मंदिर का इतिहास

इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना ईसा की तीसरी शताब्दी (लगभग 389 ई.) के आसपास हुई थी। यहाँ से मिले शिलालेख इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं।
वर्ष 1812 ई. से लेकर 1904 ई. तक कई ब्रिटिश यात्री जैसे आर.एन. मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन और ब्लाक ने इस मंदिर का भ्रमण किया और इसकी स्थापत्य कला और आस्था का उल्लेख किया।

माना जाता है कि गुप्तकाल और उत्तरगुप्तकाल में इस मंदिर का विशेष महत्त्व रहा। मंदिर की मूर्तियाँ और शिल्पकला उसी काल की निशानियाँ हैं।

स्थापत्य कला और विशेषताएँ

माँ मुण्डेश्वरी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका अष्टकोणीय आकार है। पत्थरों से बना यह मंदिर अपनी बनावट में अद्वितीय है।

  • मंदिर में चार प्रवेश द्वार हैं, जिनमें से एक को बंद कर दिया गया है और एक अर्ध्द्वार के रूप में मौजूद है।
  • मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की भव्य मूर्ति स्थापित है।
  • मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग है, जो विशेष प्रकार के पत्थर से बना है। आश्चर्य की बात यह है कि इस पत्थर का रंग सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलता रहता है।
  • मंदिर के पश्चिम भाग में विशाल नंदी की मूर्ति पूर्वाभिमुख स्थिति में स्थापित है, जो आज भी अक्षुण्ण और दिव्य प्रतीत होती है।

माँ मुण्डेश्वरी: वाराही स्वरूप

माँ यहाँ वाराही देवी के रूप में पूजी जाती हैं। शास्त्रों में वाराही को शक्ति की सapt मातृकाओं में से एक माना गया है। उनका वाहन महिष (भैंसा) है। माँ का यह स्वरूप रक्षक और संहारक दोनों रूपों में शक्तिशाली माना जाता है।
भक्त मानते हैं कि माँ मुण्डेश्वरी की कृपा से सभी दुख, कष्ट और भय दूर हो जाते हैं।


अनोखी बलि परंपरा – वध के बिना

माँ मुण्डेश्वरी मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा है यहाँ होने वाली सात्विक बलि

  • यहाँ भक्त बकरा चढ़ाते हैं, परंतु उसका वध नहीं किया जाता।
  • बलि केवल प्रतीकात्मक होती है, जो भारत के किसी अन्य मंदिर में नहीं मिलती।
  • यह परंपरा आस्था और अहिंसा दोनों का अद्भुत संगम है।

यह विशेषता इस मंदिर को न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अद्वितीय बनाती है।


धार्मिक आस्था और विश्वास

भक्त मानते हैं कि जो भी सच्चे मन से यहाँ माँ मुण्डेश्वरी के दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

  • बच्चे की कामना करने वाले दंपति यहाँ आशीर्वाद लेने आते हैं।
  • व्यापार और जीवन में सफलता के लिए लोग विशेष पूजा करवाते हैं।
  • नवरात्र के समय यहाँ हजारों श्रद्धालु पहुँचते हैं और माता के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठता है।

यात्रा और पहुँच मार्ग

माँ मुण्डेश्वरी मंदिर तक पहुँचना बेहद आसान है।

  • मंदिर तक जाने के लिए 524 फीट लंबी सड़क बनी हुई है, जहाँ तक हल्की गाड़ियाँ आसानी से पहुँच सकती हैं।
  • पटना से प्रतिदिन कई वातानुकूलित और सामान्य बसें एवं गाड़ियाँ भभुआ के लिए जाती हैं।
  • रेल मार्ग से आने के लिए गया–मुगलसराय रेलखंड पर स्थित भभुआ रोड (मोहनियाँ) स्टेशन निकटतम है।
  • वहाँ से मंदिर तक पहुँचने के लिए टैक्सी और अन्य वाहन उपलब्ध हैं।

उत्सव और मेले

  • नवरात्र के दौरान यहाँ विशाल मेला लगता है जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं।
  • इस अवसर पर मंदिर परिसर दीपों और फूलों से सजा दिया जाता है।
  • भक्त दिन-रात माता की आराधना में लीन रहते हैं।

पर्यटन आकर्षण

धार्मिक आस्था के साथ-साथ यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य का भी केंद्र है।

  • पंवरा पहाड़ी से आसपास का दृश्य अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है।
  • कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य और प्राकृतिक झरने यहाँ के आकर्षण को और बढ़ा देते हैं।

निष्कर्ष

माँ मुण्डेश्वरी मंदिर केवल बिहार ही नहीं, पूरे भारत की धरोहर है। यह मंदिर आस्था, इतिहास, संस्कृति और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। माँ वाराही की दिव्य शक्ति, पंचमुखी शिवलिंग की भव्यता और बलि की अनोखी परंपरा इस मंदिर को विश्वभर में अद्वितीय बनाती है।
जो भी भक्त यहाँ आते हैं, वे माँ की कृपा से अपने जीवन में नई ऊर्जा, विश्वास और सुख-समृद्धि का अनुभव करते हैं।