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Delhi-NCR की सड़कों पर सुबह की चाय की दुकानों से लेकर पार्कों तक, आपको हमेशा एक-दो कुत्ते ज़रूर दिख जाते हैं। ये वही स्ट्रीट डॉग्स हैं जो सालों से इसी माहौल में रहते आए हैं — जिनकी पहचान गलियों से जुड़ी है, जिनके चेहरे मोहल्ले के बच्चों से लेकर वहां रहने वाले बुज़ुर्ग तक पहचानते हैं।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने Delhi-NCR से Street Dogs को शेल्टर होम्स में शिफ्ट करने का आदेश दिया है। आदेश का मक़सद है लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और Dog-Bite जैसे मामलों में कमी लाना। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह कदम उन Dogs के लिए सही है जो सालों से खुले आसमान के नीचे, मोहल्ले के परिवारों के बीच अपना जीवन बिता रहे हैं?


मोहल्ले का हिस्सा, सिर्फ़ एक कुत्ता नहीं

Street Dogs के बारे में सोचते ही कई लोगों के मन में डर का भाव आता है, लेकिन सच्चाई यह है कि बहुत से इलाकों में ये कुत्ते स्थानीय लोगों के बेहद करीब होते हैं।

  • स्थानीय सुरक्षा: रात में मोहल्ले के बाहर हल्की सी आहट पर ये भौंक कर लोगों को सचेत करते हैं।
  • भावनात्मक जुड़ाव: कई परिवार रोज़ इन्हें खाना खिलाते हैं, ठंड में कंबल डालते हैं, बारिश में छांव देते हैं।
  • स्वास्थ्य देखभाल: अब कई एनजीओ और स्थानीय पशु-प्रेमी टीकाकरण और नसबंदी जैसे प्रयास भी कर रहे हैं।

इन डॉग्स के लिए गली, पार्क और मोहल्ला ही उनका घर है। यहाँ वे आज़ाद हैं, खुला वातावरण है और अपने “मानव दोस्तों” के साथ रहते हैं।


शेल्टर होम्स — क्या यह सच में ‘घर’ होगा?

शेल्टर होम्स का विचार सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन असलियत में कई चुनौतियाँ हैं:

  • स्पेस की कमी: बड़ी संख्या में Dogs को रखने के लिए पर्याप्त और साफ़-सुथरी जगह होना मुश्किल है।
  • प्यार और देखभाल की कमी: मोहल्ले के लोग उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, रोज़ प्यार और खाना देते हैं। शेल्टर में ये व्यक्तिगत जुड़ाव शायद ही मिल पाए।
  • मानसिक तनाव: खुले माहौल में रहने वाले Dogs के लिए अचानक पिंजरे या बंद जगह में रहना तनावपूर्ण हो सकता है।
  • रिसोर्स की कमी: भारत में कई शेल्टर पहले ही भीड़ और फंड की कमी से जूझ रहे हैं।

समाधान क्या हो सकता है?

Street Dogs को सीधे शेल्टर में भेजने के बजाय “कम्युनिटी डॉग मॉडल” को बढ़ावा दिया जा सकता है:

  1. स्थानीय स्तर पर देखभाल: मोहल्ले के लोग, एनजीओ और प्रशासन मिलकर डॉग्स के लिए सुरक्षित ज़ोन बना सकते हैं।
  2. नसबंदी और टीकाकरण: आक्रामक व्यवहार और आबादी नियंत्रण के लिए ये ज़रूरी है।
  3. जागरूकता: लोगों में कुत्तों के प्रति समझ और सुरक्षित तरीके से रहने की आदत डालना।
  4. डॉग-फीडिंग ज़ोन: निश्चित जगह तय कर वहां नियमित रूप से भोजन देना, ताकि वे भटकें नहीं।

निष्कर्ष

Street Dogs के लिए गली सिर्फ़ एक जगह नहीं, बल्कि उनका “घर” है। उन्हें शेल्टर में भेजना समाधान लग सकता है, लेकिन यह उनकी स्वतंत्रता, परिचित माहौल और उस प्यार को छीन सकता है जो उन्हें अपने स्थानीय इंसानों से मिलता है। सही रास्ता वह होगा जिसमें इंसानों और डॉग्स का साथ बना रहे, सुरक्षा भी बनी रहे और किसी का घर भी न छिने।