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“आजकल हर हाथ में माइक है, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये माइक सच्चाई के लिए है या सिर्फ वायरल होने के लिए?”

🌐 डिजिटल क्रांति या डिजिटल भ्रम?

सोशल मीडिया ने आम आदमी को आवाज़ दी — ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। लेकिन इसी सोशल मीडिया के नाम पर आज हर कोई पत्रकार बन बैठा है।
एक मोबाइल, एक माइक, और एक इंस्टाग्राम चैनल… और बन गया ‘न्यूज़ रिपोर्टर’। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि यहाँ पत्रकारिता कम, और व्यूज़ का खेल ज़्यादा है।


🔴 इस्तेमाल से ज़्यादा गलत इस्तेमाल:

  1. फेक न्यूज़ (Fake News) का बोलबाला
  2. अस्लीलता और सनसनी के वीडियो का प्रसार
  3. सच्ची खबरों की जगह Clickbait हेडलाइन
  4. ज़मीनी मुद्दों पर रिपोर्टिंग की बजाय “चायवाले की गर्लफ्रेंड” टाइप कंटेंट

ऐसे में पत्रकारिता एक जिम्मेदारी नहीं, बस एक वायरल जॉब बनकर रह गई है।


🧭 क्या सब गलत है? नहीं!

कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और क्रिएटर्स अब भी हैं जो बेबाकी से सच्चाई दिखा रहे हैं।

  • गाँव-गाँव की ज़मीनी रिपोर्ट
  • भ्रष्टाचार पर खुलासे
  • आम जनता की आवाज़

लेकिन अफ़सोस ये कि ऐसे चैनल वायरल ट्रेंड्स से पीछे रह जाते हैं, क्योंकि सच धीमा चलता है, झूठ दौड़ता है।


🏛️ ज़रूरत है कड़े क़दमों की

अब सरकार और डिजिटल नियामक एजेंसियों को चाहिए कि वो:

  • फर्जी रिपोर्टर्स और चैनलों की पहचान करें
  • सोशल मीडिया पत्रकारिता को रजिस्ट्रेशन और नियम से जोड़े
  • सच्चे पत्रकारों और कंटेंट क्रिएटर्स को प्रोत्साहन दें

📢 निष्कर्ष:

सोशल मीडिया एक ताकतवर माध्यम है। लेकिन जब इसे व्यूज़ के लालच में अंधाधुंध चलाया जाता है, तो पत्रकारिता की आत्मा मर जाती है।

🔸 न्यूज़ और व्यूज़ में फर्क करना जरूरी है।
🔸 सच्चाई धीमी हो सकती है, पर टिकती है।
🔸 हर माइक के पीछे पत्रकार नहीं होता।

“आज के दौर में 100 में से 80 डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पत्रकारिता नहीं, बल्कि सिर्फ ‘व्यूज़’ और ‘इनकम’ का खेल खेल रहे हैं।”

📱 सोशल मीडिया या ‘सो कॉल्ड मीडिया’?

आजकल हर गली-मोहल्ले में कोई न कोई “डिजिटल रिपोर्टर” मिल जाएगा — माइक लेकर कैमरे के सामने खड़ा, लेकिन न विषय की समझ, न तथ्य की परख, और न पत्रकारिता की ज़िम्मेदारी।

“पत्रकारिता एक सेवा है, लेकिन आज उसे ‘कंटेंट गेम’ बना दिया गया है।”


🧨 80% डिजिटल चैनल: सच्चाई नहीं, सिर्फ कमाई

🔻 सच्ची ख़बरों की जगह
🔻 असली मुद्दों की जगह
🔻 गाँव, किसान, शिक्षा, रोज़गार जैसे विषयों की जगह
अब दिखते हैं:

  • अश्लील वीडियो
  • फेक न्यूज़
  • भड़काऊ हेडलाइन
  • बेतुकी बहसें और ड्रामा

ये सब सिर्फ इस लिए कि ज़्यादा से ज़्यादा व्यूज़ मिले, और जेब गरम हो।


🎭 “माइक” अब एक शो बन गया है

एक समय था जब माइक इज़्ज़त और ज़िम्मेदारी का प्रतीक होता था।
लेकिन अब ये “प्रॉप” बन गया है — बस हाथ में माइक ले लो और “ख़बर” बनाओ, फिर चाहे वो कितनी भी घटिया, फर्जी या बेबुनियाद क्यों न हो।

“पत्रकारिता अब मिशन नहीं, ट्रेंडिंग कैटेगरी बन गई है।”


✅ कुछ नाम हैं जो ईमानदारी से काम कर रहे हैं…

हालांकि आज भी कुछ डिजिटल पत्रकार और क्रिएटर्स हैं जो निडरता से सच्चाई दिखा रहे हैं —

  • ज़मीनी मुद्दे
  • पब्लिक की आवाज़
  • राजनीतिक जवाबदेही

लेकिन अफ़सोस, ऐसे कंटेंट को न तो उतना सपोर्ट मिलता है, न ही वो ट्रेंड में आते हैं।


🚨 अब ज़रूरत है बदलाव की

🛑 सरकार और नियामक एजेंसियों को चाहिए कि:

  • हर डिजिटल चैनल का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो
  • फेक न्यूज़ फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो
  • कंटेंट की निगरानी के लिए स्वतंत्र समिति बने
  • सही पत्रकारों को सम्मान और सहयोग मिले

🧭 निष्कर्ष

“डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ज़रूर है, लेकिन पत्रकारिता का धर्म मत भूलिए।”

  • हर माइक के पीछे पत्रकार नहीं होता
  • वायरल होना जरूरी नहीं, सच्चा होना जरूरी है
  • अस्लीलता फैलाना आज़ादी नहीं, समाज के साथ धोखा है

🎙️ “हम पूछेंगे सवाल!”

एक अभियान फर्जी मीडिया और अश्लीलता परोसने वालों के खिलाफ
अब चुप रहने का समय नहीं। अब हर प्लेटफॉर्म पर सच बोलने का समय है।
🔴 हर माइक को पत्रकार मत मानिए।
🔴 हर यूट्यूब चैनल को मीडिया मत समझिए।
🔴 अब सच्चे पत्रकारों के लिए आवाज़ उठाइए।
🎯 हमारा मकसद:
फेक न्यूज फैलाने वाले चैनलों को बेनकाब करना
लोगों को जागरूक करना कि व्यूज़ के पीछे मत भागो, सच्चाई देखो
अश्लील और गैर-जिम्मेदार कंटेंट को रिपोर्ट और ब्लॉक करवाना
डिजिटल मीडिया को ज़िम्मेदारी की ओर मोड़ना

📢 क्या करेंगे हम?
✅ एक सीरीज़: “Fake Ka Sach” – जहाँ हर हफ्ते एक ऐसे चैनल/पेज को उजागर किया जाएगा
✅ Google Form: लोग रिपोर्ट कर सकें फर्जी कंटेंट और चैनलों को
✅ Instagram/YouTube Shorts: आसान भाषा में जागरूकता
✅ अभियान हैशटैग: #SachKaMic #StopFakeMedia #DigitalAndhi

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